भाषा और लिपि (Language and Script)
इस प्राणी जगत में मानव एक सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। मानव व अन्य प्राणियों में अन्तर कई प्रकार से है । खाना, पीना, सोना, भय, क्रोध आदि मानव व अन्य प्राणियों में समान हैं। पशु-पक्षी आदि प्राणी अपने विचारों को बोलकर व्यक्त नहीं कर सकते हैं। अपने विचारों को बोलकर दूसरों के सामने व्यक्त करने के कारण मानव अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ है। पशु, पक्षी भी अपने दिल के भावों को ध्वनि संकेतों व शारीरिक अंगों के द्वारा व्यक्त करते हैं। पशु अपने सुख, दुःख, भय, क्रोध आदि मनोभावों को दूसरों के सामने व्यक्त करते हैं। परन्तु बोल नहीं सकते हैं। मानव के पास बुद्धि विवेक अन्य प्राणियों से अधिक है। इसलिए वह श्रेष्ठ है। बुद्धि व विवेक का उपयोग भी वाणी द्वारा बोल कर अभिव्यक्त करने से ही होता है। अपने मनोभावों को व्यक्त करने का प्रमुख व सशक्त माध्यम होता है - भाषा ।
मनोभावों को व्यक्त करने का माध्यम केवल व्यक्त भाषा ही नहीं है। संकेतों के द्वारा भी मनोभाव व्यक्त किये जाते हैं। मानवों में ही गूंगे-बहरे अपने सम्पूर्ण व्यवहार संकेतों के माध्यम से ही करते हैं। व्यावहारिक जगत में हर मानव को कई अवसरों पर संकेतों से काम करना पड़ता है। जैसे हम हाथ, पाँव, आँख, शिर, होठों, दाँत आदि के संकेतों के माध्यम से दूसरों तक अपने विचार पहुँचाते हैं। कई कार्य केवल संकेतों के द्वारा ही करने पड़ते है।
जैसे चौराहे पर खड़ा सिपाही सभी वाहनों को संकेतों के माध्यम से ही मार्ग दर्शन कराता है। रेलगाड़ी में गार्ड झण्डियाँ दिखाकर संकेत के माध्यम से आदेश देता है। व्यावहारिक जगत में हम चुटकी बजाकर, आँखों के इशारे से करतल ध्वनि से, हाथ हिलाकर अपने मनोभावों को व्यक्त कर अपना काम सरलता से चलाते हैं। इस प्रकार के विचाराभिव्यक्ति के साधन या माध्यम 'भाषा' नहीं कहलाते हैं, यह भाषा का अव्यक्त रूप है, लेकिन भाषा का अव्यक्त रूप भाषा की श्रेणी में नहीं आता है, केवल व्यक्त भाषा को ही भाषा कहते हैं।
भाषा की परिभाषा
'भाषा' शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने से पूर्व हमें यह देखना है कि इसकी निष्पत्ति कहाँ से हुई है। 'भाषा' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'भाष्' धातु से हुई है। भाषा का अर्थ है - व्यक्त वाणी । मनुष्य जिन ध्वनि संकेतों के माध्यम से अपने मनोभावों को व्यक्त करता है, उसको व्यक्त वाणी कहते हैं। व्यक्त वाणी का तात्पर्य है अभिव्यंजना । अर्थात् - व्यक्त वाणी में स्पष्टता व पूर्णता अवश्य होनी चाहिए।
भाषा और लिपि मानव अपने मनोभावों या विचारों को जिसे ध्वनि संकेतों के माध्यम से स्पष्ट पूर्ण रूप से व्यक्त करता है, उसे भाषा कहते हैं ।
भाषा की उत्पत्ति -
भाषा की उत्पत्ति कब व किस प्रकार हुई इसके सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य भी नहीं है। विश्व के सभी भाषा क्षेत्रों में परम्परावादी लोग भाषा को ईश्वर प्रदत्त कहते है। लेकिन मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी हमें अनुमान पर ही सन्तुष्ट होना पड़ता है। भाषा उत्पत्ति का केवल एक आधार नहीं है प्रत्युत अनेक आधार हैं। उनमें ध्वनि संकेत सर्वमान्य आधार हैं। आदि मानव ने किसी की ध्वनि सुनकर उसको नाम देना प्रारम्भ किया होगा। जैसे - टन, खट, सी. टी. झन, हा-हा ॐ आदि।
इसके अन्तर्गत अनुकरण का सिद्धान्त भी लागू होता । जैसे एक शिशु आवाज सुनकर, देखकर अपने बड़ों की नकल करता है उसी प्रकार आदि मानव भी प्रकृति के क्रिया कलापों की नकल कर उन्हें शब्द रूप में बोलकर अभिव्यक्त करता रहा । यह तो निश्चित है कि प्रारम्भ में मानव केवल बोलकर ही अपने विचारों का आदान प्रदान करता था । शनैः शनै: मानव ने सभ्यता की देहली में पदार्पण किया, तब उसने बोलने के साथ-साथ लिखना भी प्रारम्भ किया।
भाषा के प्रकार -
भाषा विचाराभिव्यक्ति का प्रमुख साधन है, मानव अभिव्यक्ति के लिए भाषा के दो रूपों का उपयोग करता है। (क) मौखिक रूप (ख) लिखित रूप ।
(क) भाषा का मौखिक रूप -
वाणी द्वारा बोलकर विचार प्रकट करने के साधन को मौखिक भाषा या कथित भाषा कहते हैं। भाषा का यह रूप आदि कालीन है। आदि मानव मौखिक भाषा से विचारों की अभिव्यक्ति करता था । आज के सभ्य युग में भी व्यावहारिक जगत में मानव मौखिक भाषा का ही प्रयोग करता है। बातचीत, भाषण, समाचार वाचन आदि भाषा का मौखिक रूप ही है। यह भाषा का सरल, सुबोध व मूलरूप है। मानव शिशु भी भाषा के इस मूल रूप को ही प्रारम्भ में स्वाभाविक रूप से सीखता है।
(ख) भाषा का लिखित रूप -
लेखनी द्वारा लिखकर विचार प्रकट करने को लिखित भाषा कहते हैं। पुस्तकों में संचित ज्ञान भाषा का लिखित रूप ही है। भाषा का प्रारम्भिक रूप मौखिक ही था । आदि मानव जब शनैः-शनैः सभ्यता की ओर अग्रसर हुआ. तब उसको एक स्थान से दूसरे स्थान तक सन्देश पहुँचाने के लिए भाषा के लिखित रूप की आवश्यकता महसूस हुई। प्रारम्भ में वह पत्तों व वृक्षों की छालों, पशुओ की खालों पर कतिपय संकेत चिन्ह एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजता था। इस प्रकार धीरे-धीरे भाषा के लिखित रूप का विकास हुआ। उसी का विकसित रूप आज विश्व की सभी भाषाओं वर्तमान है।
भाषा परिवार -
यह कल्पना किया जाता है, जिस प्रकार सम्पूर्ण मानव जाति की उत्पत्ति एक आदि पुरुष मनु से हुई। अर्थात् - मनु के वंशज मानव व मनुष्य हुए, उसी प्रकार आदि मे सभी मानवों की भाषा भी एक ही होगी। ज्यों ज्यो मानव जाति में वृद्धि होती गयी, त्यों-त्यों मानव एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानांतरित होते गया। इस प्रकार मनुष्य सम्पूर्ण विश्व में फैलते गए। जिस मानव समाज ने जहाँ पर भी अपना स्थाई निवास बनाया, कालान्तर, में स्थान व वातावरण के प्रभाव से नयी भाषाओं का भी उद्भव होते गया। लेकिन उस नयी भाषा में उसके पूर्व भाषा के भी अधिकांश शब्द तत्सम व तद्भव रूप से विद्यमान रहे। इस प्रकार मानवों के वंश बढ़ते गये और सम्पूर्ण विश्व में फैलते गये। जिस प्रकार मानवों के वंश हैं, उसी प्रकार भाषाओं के भी वंश होते हैं। भाषाओं के जन्म के आधार पर विश्व के भाषा-वैज्ञानिकों ने विश्व की सभी भाषाओं का वर्गीकरण भाषा परिवार के रूप में किया है।
इस समय सम्पूर्ण विश्व में लगभग तीन हजार मान्य भाषाएँ हैं। उनके उद्गम के आधार पर सम्पूर्ण विश्व की भाषाओं को 12 भाषा परिवारों में विभाजित किया है। भाषाओं का पारिवारिक अध्ययन करने के लिए व्याकरण रचना, शब्द समूह व ध्वनि साम्य को ध्यान में रखा जाता है। एक परिवार में हम उन्हीं भाषाओं की गणना कर सकते हैं। जिनमें शाब्दिक व ध्वनि मूलक साम्य हो। इस प्रकार एक परिवार के कई भाषाओं का उद्गम एक ही भाषा से होता है। अर्थात् एक प्राचीन भाषा से कई नवीन व वर्तमान भाषाओं का उद्भव होता है। जिस प्रकार एक कबीले के एक पूर्वज से कालान्तर में कई मानव समुदाय बन जाते हैं। शोध करने पर उनका पूर्वज एक होता है। इसी प्रकार कई भाषाओं का पूर्वज भाषा एक होती है। उस पूर्वज भाषा से जन्मे सभी भाषाएँ एक भाषा परिवार कहलाता है। इस समय सम्पूर्ण विश्व में 12 भाषा परिवार विद्यमान है, जो बारह पूर्वज भाषाओं से निकले हैं।
विश्व के 12 भाषा परिवार इस प्रकार हैं
(1) भारोपीय परिवार, (2) द्रविड़ परिवार, (3) सैमेटिक परिवार, (4) हैमेटिक परिवार, (5) यूराल अल्टाई परिवार, (6) चीनी-तिब्बती परिवार, (7) मलेनेशियन परिवार, (8) बाँटू परिवार, (9) बुशमैन परिवार, (10) सूडानी परिवार, (11) आस्ट्रेलियन परिवार, (12) जापानी कोरियायी परिवार ।
उपर्युक्त भाषा परिवारों में से भारोपीय परिवार और द्रविड़ परिवार में भारत की सभी भाषाएँ आ जाती हैं। इसलिए यहाँ पर हम इन दो ही भाषा परिवारों का संक्षिप्त अध्ययन करेंगे।
(1) भारोपीय भाषा परिवार -
'यह संसार का सबसे बड़ा व महत्त्वपूर्ण भाषा परिवार माना जाता है। इस परिवार के बोलने वालों की संख्या संसार में सबसे अधिक है। इसका भूभाग भी अत्यन्त विस्तृत है। इसके अन्तर्गत भारत से लेकर यूरोप तक की लगभग सभी भाषाएँ आती हैं। संस्कृत, अवस्था, ग्रीक, लैटिन, अरबी, फारसी, जर्मन, फ्राँसिसी, रसियन, अंग्रेजी आदि भारोपीय परिवार की प्रमुख भाषाएँ हैं !
हमारे मत से इन सब भाषाओं का उद्गम संस्कृत है। लेकिन इस मत को सभी विद्वान एकमत से स्वीकार नहीं करते हैं और न ही किसी निश्चित भाषा को भारोपीय भाषाओं का उद्गम घोषित करते हैं। अन्य विद्वानों के मतानुसार कोई अज्ञात भाषा जो आज अस्तित्व में नहीं है। वह भारोपीय भाषाओं का उद्गम है।। भारतीय आर्य भाषा वर्ग – 'भारोपीय परिवार के कई वर्ग हैं। उनमें भारत की भाषाएँ 'भारतीय आर्य भाषा वर्ग' के अन्तर्गत आती हैं। इसके अन्तर्गत संस्कृत, पाली, प्राकृत,
अपभ्रंश: हिन्दी, मराठी, पंजाबी, गुजराती, बंगला, उड़िया, आसामी, उर्दू, सिंधि, नेपाली आदि भाषाएँ आती हैं। इन सब भाषाओं का उद्गम संस्कृत से हुआ। ऐसा सभी विद्वान एक मत से मानते हैं। उर्दू भाषा का जन्म भी भारत में ही हुआ। इसमे अधिकांश संस्कृत के तत्सम व तद्भव शब्द पाये जाते हैं। इसलिए उर्दू को भी भारतीय आर्य भाषा परिवार में रखा जाता है।
(2) द्राविड़ परिवार -
इस परिवार की भाषाएँ दक्षिण भारत, लक्ष्य दीप, अन्दमान निकोबार, लंका तक बोली जाती है। मुख्यतः दक्षिण भारत की चार भाषाएँ तेलगू, तमिल, कन्नड़ और मलयालम द्रविड़ भाषा परिवार के अन्तर्गत आती हैं। इनके अतिरिक्त कोडमु, टोडा, कोरा, कुरुरव तथा औराव भाषाएँ भी इस परिवार में आती हैं।
लिपि क्या होता है ?
भाषा का प्रारम्भिक रूप मौखिक ही था। जब मानव को लिखित भाषा की। आवश्यकता महसूस हुई तब से लिपि प्रयोग में आयी, प्रारम्भ में मानव ने स्थूल दृष्ट पदार्थों के चित्र बना कर भाषा को लिखित रूप देना प्रारम्भ किया । तदनन्तर प्रत्येक भाषाओं में शनैः-शनैः लिपियों का वर्तमान विकसित रूप सामने आया ।
'लिपि' शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है - लीपना, चित्रित करना या लिखना । अर्थात् - भाषा का लिखित रूप ही लिपि है।
मौखिक ध्वनियों को लिख कर प्रकट करने के लिए निश्चित किये गये जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें लिपि कहते हैं।
संसार में जितनी भाषाएँ हैं, लगभग उतनी ही लिपि भी हैं। एक भाषा परिवार की लिपियों में पर्याप्त साम्य होता है। भारत में भी भाषाओं की तरह ही अनेक लिपियाँ प्रचलित हैं। हिन्दी व संस्कृत की वर्णमाला देवनागरी लिपि में हैं। भारत में प्रयुक्त प्रमुख लिपि निम्नलिखित हैं।
भाषा |
लिपि |
देव नागरी लिपि |
हिन्दी, संस्कृत, मराठी, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, कौंकणी, नेपाली |
गुरुमुखी लिपि |
पंजाबी |
उड़िया लिपि |
उड़िया भाषा |
बंगला लिपि |
बंगाली भाषा |
तमिल लिपि |
तमिल भाषा |
तेलगू लिपि |
तेलगू भाषा |
मलयालम लिपि |
मलयालम भाषा |
कन्नड़ लिपि
|
कन्नड़ भाषा |
गुजराती लिपि
|
गुजराती भाषा |
फारसी लिपि
|
उर्दू, फारसी |
रोमन लिपि
|
अँग्रेजी भाषा |
अरबी लिपि
|
अरबी भाषा |
उपर्युक्त लिपियों में अरबी व फारसी लिपि दाँये से बाँये की ओर लिखी जाती हैं। शेष सभी लिपि बाँये से दाँये की ओर लिखी जाती हैं।
ब्राह्मी लिपि -
'यह' भारत की प्राचीन लिपि है। लेकिन इस लिपि में आजकल कोई भाषा नहीं लिखी जाती है। प्राचीन शिला लेख व भोज पत्रों पर ब्राह्मी लिपि लिखी गयी है। परन्तु अभी तक इस लिपि को नहीं पढ़ा गया है। भारत की प्रमुख लिपियों का उद्गम ब्राह्मी लिपि से ही है। देवनागरी, गुरुमुखी, बंगला, उड़िया, गुजराती आदि लिपियाँ ब्राह्मी लिपि के ही विकसित रूप हैं।
देव नागरी -
हिन्दी भाषा की लिपि का नाम देव नागरी है। यह सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि मानी जाती है। उत्तम लिपि की विशेषता है - अधिक से अधिक ध्वनियों को चिन्हित करना। जिस लिपि में मनुष्य के मुख से निकलने वाली अधिकांश ध्वनियों को चिन्हित किया जा सकता है वह सर्वोत्तम व वैज्ञानिक लिपि मानी जाती है। देव नागरी लिपि में मानव की सभी उच्चरित ध्वनियाँ चिन्हित हो जाती हैं। यही कारण है देव नागरी लिपि का ज्ञाता विश्व की अन्य भाषाओं का उच्चारण सरलता व स्पष्टता से कर लेता है। दूसरी विशेषता यह है कि जिन ध्वनियों को जैसा बोला जाता है, ठीक वैसा ही लिखा भी जाता है। अतः देव नागरी लिपि वैज्ञानिक व सर्वश्रेष्ठ लिपि है।
भाषा से संबंधित महत्वपूर्ण सवाल और उसके जवाब
1. भाषा किसे कहते हैं ?
भाषा और लिपि मानव अपने मनोभावों या विचारों को जिसे ध्वनि संकेतों के माध्यम से स्पष्ट पूर्ण रूप से व्यक्त करता है, उसे भाषा कहते हैं ।
2. भाषा का व्युत्पत्तिपरक अर्थ क्या है ?
'भाषा' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'भाष्' धातु से हुई है। भाषा का अर्थ है - व्यक्त वाणी । मनुष्य जिन ध्वनि संकेतों के माध्यम से अपने मनोभावों को व्यक्त करता है, उसको व्यक्त वाणी कहते हैं। व्यक्त वाणी का तात्पर्य है अभिव्यंजना । अर्थात् - व्यक्त वाणी में स्पष्टता व पूर्णता अवश्य होनी चाहिए।3. भाषा की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ? अपना मत स्पष्ट कीजिए ।
4. भाषा का प्रयोग मुख्यतः कितने रूपों में होता है ?
भाषा का प्रयोग मुख्यतः दो रूपों मे होता है। पहला मौखिक और दूसरा लिखित।5. भाषा के लिखित रूप का विकास किस प्रकार हुआ ?
लेखनी द्वारा लिखकर विचार प्रकट करने को लिखित भाषा कहते हैं। पुस्तकों में संचित ज्ञान भाषा का लिखित रूप ही है। भाषा का प्रारम्भिक रूप मौखिक ही था । आदि मानव जब शनैः-शनैः सभ्यता की ओर अग्रसर हुआ. तब उसको एक स्थान से दूसरे स्थान तक सन्देश पहुँचाने के लिए भाषा के लिखित रूप की आवश्यकता महसूस हुई। प्रारम्भ में वह पत्तों व वृक्षों की छालों, पशुओ की खालों पर कतिपय संकेत चिन्ह एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजता था। इस प्रकार धीरे-धीरे भाषा के लिखित रूप का विकास हुआ। उसी का विकसित रूप आज विश्व की सभी भाषाओं वर्तमान है।
6. संसार की भाषाओं का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया है ?
7. संसार की भाषाओं को किन भाषा परिवारों में बाँटा गया है ?
(1) भारोपीय परिवार, (2) द्रविड़ परिवार, (3) सैमेटिक परिवार, (4) हैमेटिक परिवार, (5) यूराल अल्टाई परिवार, (6) चीनी-तिब्बती परिवार, (7) मलेनेशियन परिवार, (8) बाँटू परिवार, (9) बुशमैन परिवार, (10) सूडानी परिवार, (11) आस्ट्रेलियन परिवार, (12) जापानी कोरियायी परिवार ।8. भारोपीय भाषा परिवार के बारे में आप क्या जानते हैं ?
'यह संसार का सबसे बड़ा व महत्त्वपूर्ण भाषा परिवार माना जाता है। इस परिवार के बोलने वालों की संख्या संसार में सबसे अधिक है। इसका भूभाग भी अत्यन्त विस्तृत है। इसके अन्तर्गत भारत से लेकर यूरोप तक की लगभग सभी भाषाएँ आती हैं। संस्कृत, अवस्था, ग्रीक, लैटिन, अरबी, फारसी, जर्मन, फ्राँसिसी, रसियन, अंग्रेजी आदि भारोपीय परिवार की प्रमुख भाषाएँ हैं !9. लिपि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
'लिपि' शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ है - लीपना, चित्रित करना या लिखना । अर्थात् - भाषा का लिखित रूप ही लिपि है।मौखिक ध्वनियों को लिख कर प्रकट करने के लिए निश्चित किये गये जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें लिपि कहते हैं।संसार में जितनी भाषाएँ हैं, लगभग उतनी ही लिपि भी हैं। एक भाषा परिवार की लिपियों में पर्याप्त साम्य होता है। भारत में भी भाषाओं की तरह ही अनेक लिपियाँ प्रचलित हैं। हिन्दी व संस्कृत की वर्णमाला देवनागरी लिपि में हैं।
10. निम्न प्रश्नों का उत्तर एक या दो शब्दों में लिखिए -
(क) भाषा के दो रूप कौन से हैं ?
मौखिक रूप और लिखित रूप ।(ख) हिन्दी किस भाषा परिवार की भाषा है ?
अपभ्रंश
(ग) भारत में कितने भाषा परिवार हैं ?
12 भाषा परिवार(घ) हिन्दी किस लिपि में लिखी जाती है ?
देवनागरी(ङ) अंग्रेजी की लिपि कौन सी है ?
रोमन लिपि(च) भारत में दाँये से बाँये की ओर कौन-सी लिपि लिखी जाती है ?
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